आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवाद ही क्यों ? अध्यात्मवाद ही क्यों ?श्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद ही क्यों किया जाए
Adhyatmavad Hi Kyonn - a hindi book by Sriram Sharma Acharya
अध्यात्मवाद ही क्यों ?
१. व्यक्तिगत संदर्भ में
आज का व्यक्ति समस्याओं के जाल में दिन-दिन जकड़ता चला जा रहा है। क्या धनी, क्या निर्धन, क्या विद्वान, क्या अशिक्षित, क्या रुग्ण, क्या स्वस्थ सभी स्तर के मनुष्य अपने को अभावग्रस्त और संकटत्रस्त स्थिति में पाते हैं। भूखे का पेट-दर्द दूसरी तरह का और अतिभोजी का दूसरे ढंग का, पर कष्ट-पीड़ित तो दोनों ही समान रूप से हैं। जीवन क्षेत्र में तथा संसार में समस्याओं के आकार-प्रकार अनेक प्रकार के दिखते हैं। उनमें भिन्नता भी बहुत रहती है। एक-दूसरे से असंबद्ध प्रतीत होती है और उनके कारण पृथक्-पृथक् दिखाई पड़ते हैं, पर उनके मूल में एक ही कारण होता है, अध्यात्मवादी दृष्टिकोण। यदि इस तथ्य को समझ लिया जाए तो असंख्य समस्याओं और अगणित संकटों का समाधान एक ही उपाय से कर सकना संभव हो जायेगा। प्रकाश के अभाव का ही नाम अंधकार है। जब रोशनी होती है तो अंधकार चला जाता है। अध्यात्म की ज्योति बुझ जाने से संकट खड़े होते हैं और उस प्रकाश के धूमिल पड़ जाने से अनेकानेक समस्याएँ उठती और उलझती चली जाती हैं।
छुट-पुट उपचार तो अनेक ढंग से निकल आते हैं किंतु टिकाऊ हल अध्यात्म के सहारे से ही निकल सकता है। पेट में अपच होने से रक्त अशुद्ध होता है और बढ़ती हुई सड़न से अनेक नाम रूप वाले रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इनका स्थानीय और सामयिक उपचार करने से तात्कालिक राहत मिल सकती है, पर स्थायी समाधान ढूँढ़ना हो तो रक्त शुद्धि और अपच निवारण की बात सोचनी पड़ेगी। सारे शरीर पर निकली चेचक की एक-एक फँसी की मरहम पट्टी कैसे की जायेगी ? उपाय वही सही है, जिससे रक्त में घुले विष का निवारण करके, आज की चेचक और कल की होने वाली अन्य बीमारियों की जड़ काटी जाए। सड़े कीचड़ में रेंगने वाले कीड़े उपजते हैं और गंदगी के ढेर में मक्खी , मच्छरों की उत्पत्ति होती है। हर कीड़े और मच्छर मारने के लिए लाठी लिए फिरना बेकार है। मार देने पर भी वे उपज पड़ेंगे। आधार बना रहेगा तो उत्पत्ति का क्रम रुकेगा नहीं। इन कृमि-कीटकों से छुटकारे का एक ही उपाय है कि कीचड़ और गंदगी को साफ कर दिया जाए।
परमात्मा ने अपने पुत्र मनुष्य को इस विश्व उद्यान में बहुत कुछ पाने कमाने के लिए भेजा है। समस्याएँ उसकी भूलों से सचेत करने वाली लाल बत्ती की तरह है। यदि हम मनुष्योचित्त दृष्टिकोण अपनाएँ और शालीनता का जीवन जिएँ, तो अवरोधों से जूझकर शक्ति नष्ट करने की समस्या न रहेगी और प्रगति पथ पर अनवरत गति से बढ़ते हुए पूर्णता का लक्ष्य प्राप्त करना ही तब अपने सामने एकमात्र कार्य रह जायेगा। आइए, विचार करें कि हमारे व्यक्तिगत जीवन में आए दिन कौन-कौन-सी समस्याएँ त्रास देती हैं ? वे क्यों उत्पन्न होती हैं और उनका स्थिर समाधान क्या हो सकता है ?
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- अध्यात्मवाद ही क्यों ?